Short Essay on 'Maithili Sharan Gupt' in Hindi | 'Maithili Sharan Gupt' par Nibandh (335 Words)


मैथिली शरण गुप्त

'मैथिली शरण गुप्त' का जन्म सन 1886 ई० के लगभग चिरगांव, झांसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनके पिता सेठ राम चरण जी अच्छे कवि और वैष्णव धर्म के अनुयायी व भगवद भक्त थे। अपने पिता जी से ही प्रेरणा पाकर गुप्त जी बाल्यावस्था से काव्य साधना में लग गए।

गुप्त जी की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। बाद में, वे अंग्रेजी पढ़ने के लिए झांसी गये परन्तु वहां इनका मन नहीं लगा। कक्षा नौ तक इन्होने अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त की फिर पढ़ना छोड़कर घर पर ही अध्ययन करने लगे। आचार्य महाबीर प्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आकर इन्होने काव्य रचना प्रारम्भ की।

मैथिली शरण गुप्त की रचनाएं 'सरस्वती' नामक पत्रिका में प्रकाशित होने लगीं। ये बड़े विनम्र, सरल तथा स्वाभिमानी थे। इनके अध्ययन, इनकी कविता एवं राष्ट्र के प्रति प्रेम भावना ने इन्हें बहुत उच्च स्थान प्रदान कराया। आगरा विश्वविद्यालय ने इन्हें डी० लिट्० की उपाधि से विभूषित किया।

मैथिली शरण गुप्त की कविता में राष्ट्र प्रेम की भावना भरी है तभी तो हिन्दी संसार ने इन्हें राष्ट्र कवि का सम्मान दिया। सन 1964 ई० में इनका स्वर्गवास हुआ। गुप्त जी को साकेत महाकाव्य पर हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने मंगला प्रसाद पारितोषिक प्रदान किया था। महात्मा गांधी का गुप्त जी के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा था। ये अनेक बार राष्ट्रीय आन्दोलन में जेल भी गए थे।

मैथिली शरण गुप्त जी की प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं-- साकेत, पंचवटी, किसान, रंग में भंग, जयद्रथ वध, भारत भारती, यशोधरा, सिद्धराज, हिन्दू, शकुन्तला, नहुष, द्वापर, बापू, अर्जन और विसर्जन, अंजलि और अर्ध्य आदि। उनकी बहुत-सी रचनाएँ रामायण और महाभारत पर आधारित हैं।

मैथिली शरण गुप्त जी के काव्य का मूल्यांकन करते हुए आचार्य राम चन्द्र शुक्ल जी ने अपने हिन्दी साहित्य के इतिहास में ठीक ही लिखा है कि "गुप्त जी वास्तव में सामंजस्यवादी कवि हैं। प्रतिक्रिया का प्रदर्शन करने वाले अथवा मद में झूमने वाले कवि नहीं हैं। सब प्रकार की उच्चता से प्रभावित होने वाला ह्रदय उन्हें प्राप्त है। प्राचीन के प्रति पूज्य भाव और नवीन के प्रति उत्साह, दोनों इनमें है। " 


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