Short Biography of 'Surdas' in Hindi | 'Surdas' ki Jivani (250 Words)

सूरदास

'सूरदास' का जन्म सन 1478 ई० में हुआ था। इनके जन्मस्थान के बारे में मतभेद है। कुछ विद्वान इनका जन्मस्थान आगरा से मथुरा जाने वाली सड़क पर स्थित रुनकता नामक ग्राम को मानते हैं जबकि कुछ इनका जन्मस्थान दिल्ली के निकट 'सीही' ग्राम मानते हैं।

सूरदास के माता-पिता एवं कुल के सम्बन्ध में भी विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान उन्हें चन्द्र वरदायी का वंशज मानते हैं। सूरदास जन्म से अंधे थे। परन्तु सूर ने बालक कृष्ण की विभिन्न बाल-क्रीड़ाओं, प्रकृति तथा विभिन्न प्रकार के रंगों का बहुत सूक्ष्म, यथार्थ और मार्मिक वर्णन किया है।

सूरदास जी को वल्लभाचार्य के आठ शिष्यों में प्रमुख स्थान प्राप्त था। इनकी मृत्यु सन 1583 ई० में पारसौली नामक स्थान पर हुई। कहा जाता है कि सूरदास ने सवा लाख पदों की रचना की। इनके सभी पद रागनियों पर आधारित हैं।

सूरदास जी द्वारा रचित कुल पांच ग्रन्थ उपलब्ध हुए हैं, जो निम्नलिखित हैं: सूर सागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी, नल दमयन्ती और ब्याहलो। इनमें से नल दमयन्ती और ब्याहलो की कोई भी प्राचीन प्रति नहीं मिली है। कुछ विद्वान तो केवल सूर सागर को ही प्रामाणिक रचना मानने के पक्ष में हैं।

सूरदास हिन्दी की कृष्ण भक्ति शाखा के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। जिस प्रकार राम भक्त कवियों में गोस्वामी तुलसीदास सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं, उसी प्रकार कृष्ण भक्त कवियों में सूरदास सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। वास्तव में ये दोनों कवि हिंदी काव्य गगन के चन्द्र और सूर्य हैं। किसी कवि ने ठीक ही कहा है--

'सूर सूर तुलसी ससी' 


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15 Comments

  1. THanks for this mind blowing essay

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  2. Thanks for this mind blowing essay

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  3. सूरदास

    'सूरदास' का जन्म सन 1478 ई० में हुआ था। इनके जन्मस्थान के बारे में मतभेद है। कुछ विद्वान इनका जन्मस्थान आगरा से मथुरा जाने वाली सड़क पर स्थित रुनकता नामक ग्राम को मानते हैं जबकि कुछ इनका जन्मस्थान दिल्ली के निकट 'सीही' ग्राम मानते हैं।

    सूरदास के माता-पिता एवं कुल के सम्बन्ध में भी विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान उन्हें चन्द्र वरदायी का वंशज मानते हैं। सूरदास जन्म से अंधे थे। परन्तु सूर ने बालक कृष्ण की विभिन्न बाल-क्रीड़ाओं, प्रकृति तथा विभिन्न प्रकार के रंगों का बहुत सूक्ष्म, यथार्थ और मार्मिक वर्णन किया है।

    सूरदास जी को वल्लभाचार्य के आठ शिष्यों में प्रमुख स्थान प्राप्त था। इनकी मृत्यु सन 1583 ई० में पारसौली नामक स्थान पर हुई। कहा जाता है कि सूरदास ने सवा लाख पदों की रचना की। इनके सभी पद रागनियों पर आधारित हैं।

    सूरदास जी द्वारा रचित कुल पांच ग्रन्थ उपलब्ध हुए हैं, जो निम्नलिखित हैं: सूर सागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी, नल दमयन्ती और ब्याहलो। इनमें से नल दमयन्ती और ब्याहलो की कोई भी प्राचीन प्रति नहीं मिली है। कुछ विद्वान तो केवल सूर सागर को ही प्रामाणिक रचना मानने के पक्ष में हैं।

    सूरदास हिन्दी की कृष्ण भक्ति शाखा के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। जिस प्रकार राम भक्त कवियों में गोस्वामी तुलसीदास सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं, उसी प्रकार कृष्ण भक्त कवियों में सूरदास सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। वास्तव में ये दोनों कवि हिंदी काव्य गगन के चन्द्र और सूर्य हैं। किसी कवि ने ठीक ही कहा है--
    very nice

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  4. Fantastic , amazing . hence, i liked it soooooooo much

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